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CENTRAL TEACHER ELIGIBILITY TEST Date for Submission of On-Line Application: 05-02-2019 to 05-03-2019 Last date for submission of On-line Application: 05-03-2019 Last date for submission of fee: 08-03-2019 (Before 03.30 PM) CTET-JULY 2019 INFORMATION BULLETIN Date of Examination th 7 July, 2019 (Sunday)
प्रश्न -1- किशोरों में द्वन्द्व उभरने का प्रमुख कारण है —-
A पीढ़ियों का अन्तर
B अवसरों की प्रतिकूलता
C निराशा तथा निस्सहायता
D किशोरवस्था में स्वप्न दर्शन
Ans. B
प्रश्न -2- पाठ्यचर्चा है —-
A शिक्षण पद्धति एवं पढ़ाई जाने वाली विषय – वस्तु
B विधालय का सम्पूर्ण कार्यक्रम
C मूल्यांकन प्रक्रिया
D कक्षा में प्रयुक्त पाठ्य-सामग्री
Ans. B
प्रश्न -3- डिस्लेक्सिया संबंधित है —
A मानसिक विकार
B गणितीय विकार
C पठन विकार
D व्यवहार संबंधी विकार
Ans. C
प्रश्न -4- टर्मन के अनुसार सामान्य बुद्धि-लब्धि होती हैं —
A 120 – 140
B 110 – 135
C 90 – 110
D 80 – 90
Ans. C
प्रश्न -5- जब बच्चें को कोई नियम या सिद्धांत सिखाना हो तो अध्यापक प्रयोग करेगा —
A आगमन विधि
B निगमन विधि
C विश्लेषण विधि
D कहानी कथन विधि
Ans. A
प्रश्न -6- श्यामपट्ट पर लिखते समय सबसे महत्वपूर्ण हैं —
A अच्छा लेख
B लिखने में स्पष्टता
C बड़े अक्षर
D छोटे अक्षर
Ans. A
प्रश्न -7- भूल भुलैया परीक्षण के लिए उपयुक्त आयु है —
A 10 से 16 वर्ष
B 6 से 14 वर्ष
C 1 से 3 वर्ष
D 5 से 10 वर्ष
Ans. D
प्रश्न -8- समायोजन की प्रकिया है —
A स्थिर
B गतिशील
C स्थानापन्न
D अवरोधी
Ans. B
प्रश्न -9- शिक्षा मनोविज्ञान अध्ययन करता है —
A प्रेरणा व पुनर्बलन के प्रभाव का अध्ययन
B वंशानुक्रम व वातावरण का अध्ययन
C ध्यान वंश रूचि का अध्ययन
D वैयक्तिक भेदों का अध्ययन
Ans. B
प्रश्न -10- छोटी कक्षाओं में शिक्षक की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है —
A पढ़ाने की उत्सुकता
B धैर्य व दृढ़ता
C शिक्षा विधियों का ज्ञान
D मानक भाषा का ज्ञान
Ans. B
प्रश्न -11- “बालक में सामाजिक भावना का विकास जन्मजात होता है।” आप इस कथन से —
A पूर्णत:सहमत है
B सम्भवत: सहमत है
C असहमत है
D कुछ सीमा तक सहमत है
Ans . C
प्रश्न -12- छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना विकसित करने के लिए आप—
A इसके लाभ बनायेंगे
B अन्य शिक्षकों के साथ मिलकर काम करेंगे
C सहयोग भावना की कहानी सुनाएंगे
D सहयोग न करने वाले को दण्डित करेंगे
Ans. B
प्रश्न -13- बच्चों की वृद्धि के अनुरूप, उनकी रुचियाँ —
A बहुमुखी हो जाती है
B सुदृढ व सीमित हो जाती है
C अनियमित दिशा मे चली जाती है
D पहले जैसी रहती है
Ans. A
प्रश्न -14- शिक्षा का सबसे बड़ा उदेश्य हैं —
A छात्र धन कमा सके
B ज्ञानार्जन कर सके
C बेहतर जीवन जिए
D सम्मान पा सके
Ans. B
प्रश्न -15- एक बालक को संतुलन, सुधरेपन और स्वच्छता का अनुपालन करता है, तो यह सूचक है —
A रूचि का
B अभिवृति का
C प्रशंसा का
D मूल्य का
Ans. C
♦ देशज शब्द :
चिड़िया, डाब, ढोलक, ओढ़ना, बाल, खाल, छोटा, घघरी, पाग, पेँट, झाड़ी, जाँटी, बेटी, तरकारी, आला, भोँपू, चीलगाड़ी, फटफटिया, टेँ–टेँ, चेँ–चेँ, पोँ–पोँ, मेँ–मेँ, टप–टप, झर–झर, कल–कल, धड़ा–धड़, झल–मल, झप–झप, अण्टा, तेँदुआ, ठुमरी, फुनगी, खिचड़ी, बियाना, ठेठ, गाड़ी, थैला, खटखटाना, ढूँढना, मूँगा, खोँपा, झुग्गी, लुटिया, चुटिया, खटिया, लोटा, सरपट, खर्राटा, चाँद, चुटकी, लौकी, ठठेरा, पटाखा, खुरपी, कटोरा, केला, बाजरा, ताला, लुंगी, जूता, बछिया, मेल–जोल, सटकना, डिबिया, पेट, कलाई, भोँदू, चिकना, खाट, लड़का, छोरा, दाल, रोटी, कपड़ा, भाण्डा, लत्ते, छकड़ा, खिड़की, झाड़ू, झोला, पगड़ी, पड़ोसी, खचाखच, कोड़ी, भिण्डी, कपास, परवल, सरसोँ, काँच, इडली, डोसा, उटपटांग, खटपट, चाट, चुस्की, साग, लूण, मिर्च, पेड़, धब्बा, कबड्डी, झगड़ा आदि।
(5) विदेशी शब्द –
विदेशी भाषाओँ से आये तत्सम् एवं तद्भव शब्द इस वर्ग मेँ रखे जाते है। दूसरे ‘विदेशी’ या विदेश शब्द का अर्थ भारतीय आर्य परिवार से मित्र भाषाएँ लिया जाना चाहिए, क्योँकि हिन्दी मेँ द्रविड़ परिवार की भाषाओँ के शब्द भी मिलते हैँ, किन्तु द्रविड़ भाषाओँ को विदेशी भाषा नहीँ कहा जा सकता है। इसलिए विदेशी भाषा का ‘देश से बाहर की भाषा’ अर्थ लेने से अव्यप्ति दोष आ जाएगा। हिन्दी भाषा अपने उद्भव से लेकर आज तक अनेक भाषाओँ के सम्पर्क मेँ आयी जिनमेँ से प्रमुख हैँ—अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, पुर्तगाली व फ्रेँच।
♦ अरबी शब्द :
गरीब, मालिक, कैदी, औरत, रिश्वत, कलम, अमीर, औलाद, दिमाग, तरक्की, तरफ, तकिया, जालिम, जलसा, जनाब, जुलूस, खबर, कायदा, शराब, हमला, हाकिम, हक, हिसाब, मतलब, कसरत, कसर, कसूर, उम्र, ईमानदार, इलाज, इमारत, ईनाम, आदत, आखिर, मशहूर, मौलवी, मुहावरा, मदद, फायदा, नशा, तमीज, तबियत, तबला, तबादला, तमाम, दावत, आम, फकीर, अजब, अजीब, अखबार, असर, अल्ला, किस्मत, खत, जिक्र, तजुरबा, दुनिया, बहस, मुकदमा, वकील, हमला, अहमक, ईमान, किस्त, खत्म, जवाब, तादाद, दिन, दुकान, दलाल, बाज, फैसला, मामूली, मालूम, मुन्सिफ, मजमून, वहम, लायक, वारीस, हाशिया, हाल, हाजिर, अदा, आसार, आदमी, औसत, कीमत, कुर्सी, जिस्म, तमाशा, तारीफ, तकदीर, तकाजा, तमाम, एहसान, किस्सा, किला, खिदमत, दाखिल, दौलत, बाकी, मुल्क, यतीम, लफ्ज, लिहाज, हौसला, हवालात, मौसम, मौका, कदम, इजलास, नकल, नहर, मुसाफिर, कब्र, इज्जत, इमारत, कमाल, ख्याल, खराब, तारीख, दुआ, दफ्तर, दवा, मुद्दई, दवाखाना, मौलवी, ताज, मशाल, शेख, इरादा, इशारा, तहसील, हलवाई, नकद, अदालत, लगान, वालिद, खुफिया, कुरान, अरबी, मीनार, खजाना, ऐनक, खत आदि।
♦ फारसी शब्द :
जबर, जोर, जीन, जहर, जंग, माशा, राह, पलंग, दीवार, जान, चश्मा, गोला, किनारा, आफत, आवारा, कमरबंद, गल्ला, चिराग, जागीर, ताजा, नापसन्द, मादा, रोगन, रंग, बेरहम, नाव, तनख्वाह, जादू, चादर, गुम, किशमिश, आमदनी, आराम, अदा, कुश्ती, खूब, खुराक, गोश्त, गुल, ताक, तीर, तेज, दवा, दिल, दिलेर, बेहूदा, बहरा, बेवा, मरहम, मुर्गा, मीन, आतीशबाजी, आबरू, आबदार, अफसोस, कमीना, खुश, खरगोश, खामोश, गुलाब, गुलुबन्द, चाशनी, चेहरा, चूँकि, चरखा, तरकश, जोश, जिगर, जुर्माना, दंगल, दरबार, दुकान, देहात, पैमाना, मोर्चा, मुफ्त, पेशा, पारा, मलीदा, पुल, मजा, पलक, मुर्दा, मलाई, पैदावार, दस्तूर, शादी, वापिस, वर्ना, हजार, हफ्ता, सौदागर, सूद, सरकार, सरदार, लश्कर, सितार, सुर्ख, लगाम, लेकिन, सितारा, चापलूसी, गन्दगी, बर्फ, बीमार, नमूना, नमक, जमीँदार, अनार, बाग, जिन्दगी, जनाना, कारखाना, तख्त, बाजार, रोशनदान, चिलम, हुक्का, अमरूद, गवाह, जलेबी, किसमिस, कारीगर, पर्दा, कबूतर, चुगलखोर, शिकार, चापलूसी, चालाक, प्याला, रूमाल, आन, आबरू, आमदनी, अंजाम, अंजुमन, अन्दाज, अगर, अगरचे, अगल, बगल, आफत, आवाज, आईना, किनारा, गर्द, गीला, गिरह, नेहरा, तीन, नाजुक, नापाक, पाजी, परहेज, याद, बेरहम, तबाह, आजमाइश, जल्दी आदि।
♦ अंग्रेजी शब्द :
डाक्टर, टेलीफोन, टैक्स, टेबल, अफसर, कमेटी, एजेन्ट, कमीशन, नर्स, कम्पाउंडर, कालेज, जेल, होल्डर, बॉक्स, गैस, चेयरमैन, अपील, टिकिट, कोर्ट, गिलास, सिनेमा, नम्बर, पैन्सिल, रबर, रजिस्टर, प्रेस, समन, थियटर, डिग्री, बोतल, मील, कैप्टन, पैन, फाउन्टेन, ड्राइवर, डिस्ट्रिक्ट, डिप्टी, ट्यूशन, काउन्सिल, क्रिकेट, क्वार्टर, कम्पनी, एजेन्सी, इयरिँग, इन्टर, इंच, मीटिँग, केम, पाउडर, पैट्रोल, पार्सल, प्लेट, पार्टी, दिसम्बर, थर्मामीटर, ऑफिस, ड्रामा, ट्रक, कैलेण्डर, आंटी, बैग, होमवर्क, मजिस्ट्रेट, पोस्टमैन, कमेटी, कूपन, डबल, कम्पनी, ओवरकोट, कमीशन, फोटो, इंस्पेक्टर, राशन, गार्ड, रेल, लाइन, रिकार्ड, सूटकेस, हाईकोर्ट, मशीन, डायरी, मिनट, रेडियो, स्कूल, हॉस्टल, सर्कस, स्टेशन, फुटबॉल, टॉफी, प्लेटफार्म, टाइप, पाउडर, पास, नोटिस आदि।
♦ तुर्की शब्द :
लफंगा, चिक, चेचक, लाश, कुर्की, मुगल, कुली, कैँची, बहादुर, कज्जाक, बेगम, काबू, तलाश, कालीन, तोप, तमगा, आगा, उर्दू, चमना, जाजिम, चुगुल, सुराग, सौगात, उजबक, चकमक, बावर्ची, मुचलका, गलीचा, चमचा, बुलबुल, दरोगा, चाकू, बारुद, अरमान आदि।
♦ पुर्तगाली शब्द :
तौलिया, तिजोरी, चाबी, गमला, कारतूस, आलपिन, अचार, कमीज, कॉफी, तम्बाकू, साबुन, फीता, किरानी, बाल्टी, आलमारी, अन्नानास, अलकतरा, काजू, मस्तुल, पिस्तौल, नीलाम, गोदाम, किरच, कमरा, कनस्तर, संतरा, पीपा, मिस्त्री, बिस्कुट, परात, बोतल, काज, पपीता, मेज, आलू आदि।
♦ फ्रांसीसी शब्द :
पुलिस, कर्फ्यू, अंग्रेज, इंजन, कारतूस, कूपन, इंजिनियर, रेस्तरां, फिरंगी, फ्रेँचाइज, फ्रांस आदि।
♦ यूनानी शब्द :
टेलीफोन, डेल्टा, एटम, टेलीग्राफ आदि।
♦ डच शब्द :
तुरुप, बम।
♦ चीनी शब्द :
चाय, लीची, तूफान आदि।
♦ तिब्बती शब्द :
डांडी।
♦ ग्रीक शब्द :
दाम, सुरंग आदि।
♦ जापानी शब्द :
रिक्शा, झम्पान आदि।
(6) संकर शब्द –
संकर शब्द वे शब्द होते हैँ, जो दो मित्र भाषाओँ के शब्दोँ से मिलकर सामाजिक शब्दोँ के रूप मेँ निर्मित होते हैँ। ये शब्द भी हिन्दी मेँ प्रयुक्त होते हैँ। जैसे –
• रेलगाड़ी (अंग्रेजी+हिन्दी),
• बमवर्षा (अंग्रेजी+संस्कृत),
• नमूनार्थ (फारसी+संस्कृत),
• सजाप्राप्त (फारसी+संस्कृत),
• रेलयात्रा (अंग्रेजी+संस्कृत),
• जिलाधीश (अरबी+संस्कृत),
• जेब खर्च (पुर्तगाली+फारसी),
• रामदीन (संस्कृत+फारसी),
• रामगुलाम (संस्कृत+फारसी),
• हैड मुनीम (अंग्रेजी+हिन्दी),
• शादी ब्याह (फारसी+हिन्दी),
• तिमाही (हिन्दी+फारसी) ।
♦ व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द–भेद :
व्युत्पत्ति (बनावट) एवं रचना के आधार पर शब्दोँ के तीन भेद किये गये हैँ – (1) रूढ़ (2) यौगिक (3) योगरूढ़।
(1) रूढ़ :
जिन शब्दोँ के खण्ड किये जाने पर उनके खण्डोँ का कोई अर्थ न निकले, उन शब्दोँ को ‘रूढ़’ शब्द कहते हैँ। दूसरे शब्दोँ मेँ, जिन शब्दोँ के सार्थक खण्ड नहीँ किये जा सकेँ वे रूढ़ शब्द कहलाते हैँ। जैसे – ‘पानी’ एक सार्थक शब्द है , इसके खण्ड करने पर ‘पा’ और ‘नी’ का कोई संगत अर्थ नहीँ निकलता है। इसी प्रकार रात, दिन, काम, नाम आदि शब्दोँ के खण्ड किये जाएँ तो ‘रा’, ‘त’, ‘दि’, ‘न’, ‘का’, ‘म’, ‘ना’, ‘म’ आदि निरर्थक ध्वनियाँ ही शेष रहेँगी। इनका अलग–अलग कोई अर्थ नहीँ है। इसी तरह रोना, खाना, पीना, पान, पैर, हाथ, सिर, कल, चल, घर, कुर्सी, मेज, रोटी, किताब, घास, पशु, देश, लम्बा, छोटा, मोटा, नमक, पल, पेड़, तीर इत्यादि रूढ़ शब्द हैँ।
(2) यौगिक :
यौगिक शब्द वे होते हैँ, जो दो या अधिक शब्दोँ के योग से बनते हैँ और उनके खण्ड करने पर उन खण्डोँ के वही अर्थ रहते हैँ जो अर्थ वे यौगिक होने पर देते हैँ। यथा – पाठशाला, महादेव, प्रयोगशाला, स्नानागृह, देवालय, विद्यालय, घुड़सवार, अनुशासन, दुर्जन, सज्जन आदि शब्द यौगिक हैँ। यदि इनके खण्ड किये जाएँ जैसे – ‘घुड़सवार’ मेँ ‘घोड़ा’ व ‘सवार’ दोनोँ खण्डोँ का अर्थ है। अतः ये यौगिक शब्द हैँ।
यौगिक शब्दोँ का निर्माण मूल शब्द या धातु मेँ कोई शब्दांश, उपसर्ग, प्रत्यय अथवा दूसरे शब्द मिलाकर संधि या समास की प्रक्रिया से किया जाता है।
उदाहरणार्थ :–
– ‘विद्यालय’ शब्द ‘विद्या’ और ‘आलय’ शब्दोँ की संधि से बना है तथा इसके दोनोँ खण्डोँ का पूरा अर्थ निकलता है।
– ‘परोपकार’ शब्द ‘पर’ व ‘उपकार’ शब्दोँ की संधि से बना है।
– ‘सुयश’ शब्द मेँ ‘सु’ उपसर्ग जुड़ा है।
– ‘नेत्रहीन’ शब्द मेँ ‘नेत्र’ मेँ ‘हीन’ प्रत्यय जुड़ा है।
– ‘प्रत्यक्ष’ शब्द का निर्माण ‘अक्ष’ मेँ ‘प्रति’ उपसर्ग के जुड़ने से हुआ है। यहाँ दोनोँ खण्डोँ ‘प्रति’ तथा ‘अक्ष’ का पूरा–पूरा अर्थ है।
♦ कुछ यौगिक शब्द हैँ:
आगमन, संयोग, पर्यवेक्षण, राष्ट्रपति, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, नम्रता, अन्याय, पाठशाला, अजायबघर, रसोईघर, सब्जीमंडी, पानवाला, मृगराज, अनपढ़, बैलगाड़ी, जलद, जलज, देवदूत, मानवता, अमानवीय, धार्मिक, नमकीन, गैरकानूनी, घुड़साल, आकर्षण, सन्देहास्पद, हास्यास्पद, कौन्तेय, राधेय, दाम्पत्य, टिकाऊ, भार्गव, चतुराई, अनुरूप, अभाव, पूर्वापेक्षा, पराजय, अन्वेषण, सुन्दरता, हरीतिमा, कात्यायन, अधिपति, निषेध, अत्युक्ति, सम्माननीय, आकार, भिक्षुक, दयालु, बहनोई, ननदोई, अपभ्रंश, उज्ज्वल, प्रत्युपकार, छिड़काव, रंगीला, राष्ट्रीय, टकराहट, कुतिया, परमानन्द, मनोहर, तपोबल, कर्मभूमि, मनोनयन, महाराजा।
(3) योगरूढ़ :
जब किसी यौगिक शब्द से किसी रूढ़ अथवा विशेष अर्थ का बोध होता है अथवा जो शब्द यौगिक संज्ञा के समान लगे किन्तु जिन शब्दोँ के मेल से वह बना है उनके अर्थ का बोध न कराकर, किसी दूसरे ही विशेष अर्थ का बोध कराये तो उसे योगरूढ़ कहते हैँ। जैसे –
‘जलज’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जल से उत्पन्न हुआ’। जल मेँ कई चीजेँ व जीव जैसे – मछली, मेँढ़क, जोँक, सिँघाड़ा आदि उत्पन्न होते हैँ, परन्तु ‘जलज’ अपने शाब्दिक अर्थ की जगह एक अन्य या विशेष अर्थ मेँ ‘कमल’ के लिए ही प्रयुक्त होता है। अतः यह योगरूढ़ है।
‘पंकज’ शाब्दिक अर्थ है ‘कीचड़ मेँ उत्पन्न (पंक = कीचड़ तथा ज = उत्पन्न)’। कीचड़ मेँ घास व अन्य वस्तुएँ भी उत्पन्न होती हैँ किन्तु ‘पंकज’ अपने विशेष अर्थ मेँ ‘कमल’ के लिए ही प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार ‘नीरद’ का शाब्दिक अर्थ है ‘जल देने वाला (नीर = जल, द = देने वाला)’ जो कोई भी व्यक्ति, नदी या अन्य कोई भी स्रोत हो सकता है, परन्तु ‘नीरद’ शब्द केवल बादलोँ के लिए ही प्रयुक्त करते हैँ। इसी तरह ‘पीताम्बर’ का अर्थ है पीला अम्बर (वस्त्र) धारण करने वाला जो कोई भी हो सकता है, किन्तु ‘पीताम्बर’ शब्द अपने रूढ़ अर्थ मेँ ‘श्रीकृष्ण’ के लिए ही प्रयुक्त है।
♦ कुछ योगरूढ़ शब्द :
योगरूढ़ — विशिष्ट अर्थ
कपीश्वर – हनुमान
रतिकांत – कामदेव
मनोज – कामदेव
विश्वामित्र – एक ऋषि
वज्रपाणि – इन्द्र
घनश्याम – श्रीकृष्ण
लम्बोदर – गणेशजी
नीलकंठ – शंकर
चतुरानन – ब्रह्मा
त्रिनेत्र – शंकर
त्रिवेणी – तीर्थराज प्रयाग
चतुर्भुज – ब्रह्मा
दुर्वासा – एक ऋषि
शूलपाणि – शंकर
दिगम्बर – शंकर
वीणापाणि – सरस्वती
षडानन – कार्तिकेय
दशानन – रावण
पद्मासना – लक्ष्मी
पद्मासन – ब्रह्मा
पंचानन – शिव
सहस्राक्ष – इन्द्र
वक्रतुण्ड – गणेशजी
मुरारि – श्रीकृष्ण
चक्रधर – विष्णु
गिरिधर – कृष्ण
कलकंठ – कोयल
हलधर – बलराम
षटपद – भौँरा
वीणावादिनी – सरस्वती
♦ अर्थ के आधार पर शब्द–भेद:
अर्थ के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं–
1. सार्थक शब्द –
जिन शब्दोँ का पूरा–पूरा अर्थ समझ मेँ आये, उन्हेँ सार्थक शब्द कहते हैँ। जैसे – कमल, गाय, पक्षी, रोटी, पानी आदि।
2. निरर्थक शब्द –
जिन शब्दोँ का कोई अर्थ नहीँ निकलता, उन्हेँ निरर्थक शब्द कहते हैँ। जैसे – लतफ, ङणमा, वाय, वंडा आदि।
कभी–कभी एक सार्थक शब्द के साथ एक निरर्थक शब्द का प्रयोग किया जाता है, जैसे – चाय–वाय, गाय–वाय, रोटी–वोटी, पेन–वेन, पुस्तक–वुस्तक, डंडा–वंडा, पानी–वानी आदि। इन शब्दोँ मेँ आये हुए दूसरे अकेले शब्द का कोई अर्थ नहीँ निकलता। जैसे– गाय के साथ वाय और पेन के साथ वेन आदि। गाय और पेन, शब्दोँ का अर्थ पूर्ण रूप से समझ मेँ आता है जबकि वाय और वेन शब्दोँ का अर्थ समझ मेँ नहीँ आता। यदि वाय, और वेन को यहाँ से हटा दिया जाये तो भी शब्द के अर्थ पर कोई असर नहीँ पड़ेगा परन्तु ये शब्द पहले शब्द के साथ मिलकर एक विशिष्ट अर्थ देते हैँ, जो अकेले गाय और पेन नहीँ है। जैसे – गाय-वाय का अर्थ, दूध देने वाले पशु से है और पेन-वेन का अर्थ, लिखने के साधन से है।
गणितशास्त्र की तकनीकों को, अधिगम (अध्ययन) को अधिक प्रभावी रूप से सार्थक, रोचक और स्थायी बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
गणितशास्त्र में दिमागी कार्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस कार्य में केवल दिमाग शामिल होता है, इसलिए इसे दिमागी अथवा मानसिक कार्य कहते हैं।
गणित अमल और अभ्यास का विषय है। इसलिए गणितशास्त्र के अध्ययन में अभ्यास कार्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अभ्यास की मदद से हम गणितीय सवालों को कम समय में सटीकता से हल कर सकते हैं।अभ्यास कार्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होता है जैसे करके सीखने का सिद्धांत और अभ्यास का सिद्धांत।
गृह कार्य का अर्थ घर में बच्चे के लिए अध्ययन मौहाल तैयार करना है।
असाइनमेंट कक्षा शिक्षण का पूरक है। एक असाइनमेंट विद्यार्थियों को सौंपा गया वह कार्य है जिसे शिक्षक की पसंद अनुसार विद्यालय अथवा घर में पूरा किया जा सकता है।
गणित में सभी कार्य मौखिक रूप से नहीं किए जा सकते हैं। इसलिए मौखिक कार्य को लिखित कार्य से अवश्य पूरा करना चाहिए। यह शिक्षक की अपने छात्रों द्वारा किए गए कार्य की मात्रा जानने में मदद करता है।
यह गणित शिक्षण की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक है। इस तकनीक में, किसी बड़ी कक्षा अथवा समूह को छोटे समूह में उसकी योग्यताओं और रुचि के अनुसार बांट दिया जाता है। इसलिए, समूह के छोटे हो जाने से प्रत्येक छात्र पर ख़ास ध्यान दिया जा सकता है।
स्व-अध्ययन में, व्यक्ति स्वयं से अध्ययन करता और सीखता है। इसमें छात्र किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता के बिना प्रत्येक समस्या को हल करने की कोशिश करता है।
निरीक्षण अध्ययन में छात्र शिक्षक की उपस्थिति और उसकी प्रत्यक्ष निगरानी में सौंपे गए कार्य का अध्ययन करते हैं। यह तकनीक क्रियाविधि और व्यक्तिगत अंतर के सिद्धांत पर आधारित होती है।
समीक्षा का अर्थ पुनः देखना है। इसका मुख्य उद्देश्य बेहतर स्मरण रखने के लिए पूर्व के अनुभवों को याद करना है। यह किसी याद सामग्री को दोहराने का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। नए अधिगम में समीक्षा को अवश्य शामिल करना चाहिए।
यह कार्य के सामान्यीकरण के आधुनिक सिद्धांत पर आधारित है। गणित शिक्षण की इस तकनीक में, शिक्षक सभी छात्रों को एक समस्या देते हैं। छात्र उस समस्या पर स्वतंत्र रूप से सोचते हैं और उसके बाद वे खुलकर समस्या पर अपने दृष्टिकोण और विचारों को रखते हैं। यह जरूरी नहीं होता है कि छात्र के विचार अर्थपूर्ण हैं अथवा नहीं। शिक्षक छात्रों के दृष्टिकोण लिखता है और निष्कर्ष निकालता है।
क्रम संख्या | विषय | प्रश्नों की संख्या | अंक | कुल समय |
1 | बाल विकास एवं शिक्षण | 30 | 30 | 150 मिनट्स |
2 | गणित | 30 | 30 | |
3 | भाषा – 1 | 30 | 30 | |
4 | भाषा – 2 | 30 | 30 | |
5 | पर्यावरण अध्ययन | 30 | 30 | |
कुल | 150 | 150 |
क्रम संख्या | विषय | प्रश्नों की संख्या | अंक | कुल समय |
1 | बाल विकास एवं शिक्षण | 30 | 30 | 150 मिनट्स |
2 | भाषा – 1 | 30 | 30 | |
3 | भाषा – 2 | 30 | 30 | |
4 | विज्ञानं और गणित या सामाजिक अध्ययन | 60 | 60 | |
कुल | 150 | 150 |
नोट: गणित और विज्ञान विषय, गणित और विज्ञान के अध्यापकों के लिए है| सामाजिक विज्ञान विषय, सामाजिक विज्ञान के अध्यापक के लिए है| अन्य विषयों के अध्यापक इनमे से किसी एक विषय को चुन सकते है|
बाल विकास (प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए) 15 सवाल
समावेशी शिक्षा की अवधारणा और बच्चों की समझ का आकलन (5 प्रश्न)
शिक्षा और अध्यापन – 10 प्रश्न
भाषा समझ – (15 सवाल)
एक गद्य या नाटक और एक कविता समझ पर पूंछे जाते है जिसमे, अनुमान, व्याकरण और शाब्दिक क्षमता से सम्बंधित प्रश्न भी होते है (गद्य पठांश साहित्यिक, वैज्ञानिक, कथा या असंबद्ध हो सकता है)
भाषा विकास का अध्यापन – (15 सवाल)
Two unseen prose passages (discursive or literary or narrative or scientific) with question on comprehension, grammar and verbal ability
गणित कंटेंट: (15 प्रश्न)
(b) शैक्षणिक मुद्दे: (15 प्रश्न)
(a) कंटेंट संबंधित प्रश्न – (15 प्रश्न)
I. परिवार और दोस्तों:
II. भोजन
III. घर
IV. पानी
V. यात्रा
VI. चीजें जो हम करते हैं
(b) शैक्षणिक मुद्दे – (15 प्रश्न)
“संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में ‘लिंग’ कहते है।
दूसरे शब्दों में-संज्ञा शब्दों के जिस रूप से उसके पुरुष या स्त्री जाति होने का पता चलता है, उसे लिंग कहते है।
सरल शब्दों में- शब्द की जाति को ‘लिंग’ कहते है।
जैसे-
पुरुष जाति- बैल, बकरा, मोर, मोहन, लड़का आदि।
स्त्री जाति- गाय, बकरी, मोरनी, मोहिनी, लड़की आदि।
‘लिंग’ संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘चिह्न’ या ‘निशान’। चिह्न या निशान किसी संज्ञा का ही होता है। ‘संज्ञा’ किसी वस्तु के नाम को कहते है और वस्तु या तो पुरुषजाति की होगी या स्त्रीजाति की। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक संज्ञा पुंलिंग होगी या स्त्रीलिंग। संज्ञा के भी दो रूप हैं। एक, अप्रणिवाचक संज्ञा- लोटा, प्याली, पेड़, पत्ता इत्यादि और दूसरा, प्राणिवाचक संज्ञा- घोड़ा-घोड़ी, माता-पिता, लड़का-लड़की इत्यादि।
सारी सृष्टि की तीन मुख्य जातियाँ हैं- (1) पुरुष (2) स्त्री और (3) जड़। अनेक भाषाओं में इन्हीं तीन जातियों के आधार पर लिंग के तीन भेद किये गये हैं- (1) पुंलिंग (2) स्त्रीलिंग और (3) नपुंसकलिंग।
अँगरेजी व्याकरण में लिंग का निर्णय इसी व्यवस्था के अनुसार होता है। मराठी, गुजराती आदि आधुनिक आर्यभाषाओं में भी यह व्यवस्था ज्यों-की-त्यों चली आ रही है।
इसके विपरीत, हिन्दी में दो ही लिंग- पुंलिंग और स्त्रीलिंग- हैं। नपुंसकलिंग यहाँ नहीं हैं। अतः, हिन्दी में सारे पदार्थवाचक शब्द, चाहे वे चेतन हों या जड़, स्त्रीलिंग और पुंलिंग, इन दो लिंगों में विभक्त है।
हिन्दी व्याकरण में लिंग के दो भेद होते है-
(1)पुलिंग(Masculine Gender)
(2)स्त्रीलिंग( Feminine Gender)
(1) पुलिंग :- जिन संज्ञा शब्दों से पुरूष जाति का बोध होता है, उसे पुलिंग कहते है।
जैसे-
सजीव- कुत्ता, बालक, खटमल, पिता, राजा, घोड़ा, बन्दर, हंस, बकरा, लड़का इत्यादि।
निर्जीव पदार्थ- मकान, फूल, नाटक, लोहा, चश्मा इत्यादि।
भाव- दुःख, लगाव, इत्यादि।
(2)स्त्रीलिंग :- जिस संज्ञा शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते है।
जैसे-
सजीव- माता, रानी, घोड़ी, कुतिया, बंदरिया, हंसिनी, लड़की, बकरी,जूँ।
निर्जीव पदार्थ- सूई, कुर्सी, गर्दन इत्यादि।
भाव- लज्जा, बनावट इत्यादि।
(1) कुछ संज्ञाएँ हमेशा पुल्लिंग रहती है-
खटमल, भेड़या, खरगोश, चीता, मच्छर, पक्षी, आदि।
(2)समूहवाचक संज्ञा- मण्डल, समाज, दल, समूह, वर्ग आदि।
(3) भारी और बेडौल वस्तुअों- जूता, रस्सा, लोटा ,पहाड़ आदि।
(4) दिनों के नाम- सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वीरवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार आदि।
(5) महीनो के नाम- फरवरी, मार्च, चैत, वैशाख आदि। (अपवाद- जनवरी, मई, जुलाई-स्त्रीलिंग)
(6) पर्वतों के नाम- हिमालय, विन्द्याचल, सतपुड़ा, आल्प्स, यूराल, कंचनजंगा, एवरेस्ट, फूजीयामा आदि।
(7) देशों के नाम- भारत, चीन, इरान, अमेरिका आदि।
(8) नक्षत्रों, व ग्रहों के नाम- सूर्य, चन्द्र, राहू, शनि, आकाश, बृहस्पति, बुध आदि।
(अपवाद- पृथ्वी-स्त्रीलिंग)
(9) धातुओं- सोना, तांबा, पीतल, लोहा, आदि।
(10) वृक्षों, फलो के नाम- अमरुद, केला, शीशम, पीपल, देवदार, चिनार, बरगद, अशोक, पलाश, आम आदि।
(11) अनाजों के नाम- गेहूँ, बाजरा, चना, जौ आदि। (अपवाद- मक्की, ज्वार, अरहर, मूँग-स्त्रीलिंग)
(12) रत्नों के नाम- नीलम, पुखराज, मूँगा, माणिक्य, पन्ना, मोती, हीरा आदि।
(13) फूलों के नाम- गेंदा, मोतिया, कमल, गुलाब आदि।
(14) देशों और नगरों के नाम- दिल्ली, लन्दन, चीन, रूस, भारत आदि।
(15) द्रव पदार्थो के नाम- शरबत, दही, दूध, पानी, तेल, कोयला, पेट्रोल, घी आदि।
(अपवाद- चाय, कॉफी, लस्सी, चटनी- स्त्रीलिंग)
(16) समय- घंटा, पल, क्षण, मिनट, सेकेंड आदि।
(17) द्वीप- अंडमान-निकोबार, जावा, क्यूबा, न्यू फाउंडलैंड आदि।
(18) सागर- हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अरब सागर आदि।
(19) वर्णमाला के अक्षर- क्, ख्, ग्, घ्, त्, थ्, अ, आ, उ, ऊ आदि। (अपवाद- इ, ई, ऋ- स्त्रीलिंग)
(20) शरीर के अंग- हाथ, पैर, गला, अँगूठा, कान, सिर, मस्तक, मुँह, घुटना, ह्रदय, दाँत आदि।
(अपवाद- जीभ, आँख, नाक, उँगलियाँ-स्त्रीलिंग)
(21) आकारान्त संज्ञायें- गुस्सा, चश्मा, पैसा, छाता आदि।
(22) ‘दान, खाना, वाला’ आदि से अंत होने वाले अधिकतर शब्द पुल्लिंग होते हैं; जैसे- खानदान, पीकदान, दवाखाना, जेलखाना, दूधवाला आदि।
(23) अ, आ, आव, पा, पन, क, त्व, आवा तथा औड़ा से अंत होने वाली संज्ञाएँ पुल्लिंग होती हैं :
अ- खेल, रेल, बाग, हार, यंत्र आदि।
आ- लोटा, मोटा, गोटा, घोड़ा, हीरा आदि।
आव- पुलाव, दुराव, बहाव, फैलाव, झुकाव आदि।
पा- बुढ़ापा, मोटापा, पुजापा आदि।
पन- लड़कपन, अपनापन, बचपन, सीधापन आदि।
क- लेखक, गायक, बालक, नायक आदि।
त्व- ममत्व, पुरुषत्व, स्त्रीत्व, मनुष्यत्व आदि।
आवा- भुलावा, छलावा, दिखावा, चढ़ावा आदि।
औड़ा- पकौड़ा, हथौड़ा आदि।
(24) मच्छर, गैंडा, कौआ, भालू, तोता, गीदड़, जिराफ, खरगोश, जेबरा आदि सदैव पुल्लिंग होते हैं।
(25) कुछ प्राणिवाचक शब्द, जो सदैव पुरुष जाति का बोध कराते हैं; जैसे- बालक, गीदड़, कौआ, कवि, साधु आदि।
(1) स्त्रीलिंग शब्दों के अंतर्गत नक्षत्र, नदी, बोली, भाषा, तिथि, भोजन आदि के नाम आते हैं; जैसे-
(i) कुछ संज्ञाएँ हमेशा स्त्रीलिंग रहती है- मक्खी ,कोयल, मछली, तितली, मैना आदि।
(ii) समूहवाचक संज्ञायें- भीड़, कमेटी, सेना, सभा, कक्षा आदि।
(iii) प्राणिवाचक संज्ञा- धाय, सन्तान, सौतन आदि।
(iv) छोटी और सुन्दर वस्तुअों के नाम- जूती, रस्सी, लुटिया, पहाड़ी आदि।
(v) नक्षत्र- अश्विनी, रेवती, मृगशिरा, चित्रा, भरणी, रोहिणी आदि।
(vi) बोली- मेवाती, ब्रज, खड़ी बोली, बुंदेली आदि।
(vii) नदियों के नाम- रावी, कावेरी, कृष्णा, यमुना, सतलुज, रावी, व्यास, गोदावरी, झेलम, गंगा आदि।
(viii) भाषाओं व लिपियों के नाम- देवनागरी, अंग्रेजी, हिंदी, फ्रांसीसी, अरबी, फारसी, जर्मन, बंगाली आदि।
(ix) पुस्तकों के नाम- कुरान, रामायण, गीता आदि।
(x) तिथियों के नाम- पूर्णिमा, अमावस्था, एकादशी, चतुर्थी, प्रथमा आदि।
(xi) आहारों के नाम- सब्जी, दाल, कचौरी, पूरी, रोटी आदि।
अपवाद- हलुआ, अचार, रायता आदि।
(xii) ईकारान्त वाले शब्द- नानी, बेटी, मामी, भाभी आदि।
नोट- हिन्दी भाषा में वाक्य रचना में क्रिया का रूप लिंग पर ही निर्भर करता है। यदि कर्ता पुल्लिंग है तो क्रिया रूप भी पुल्लिंग होता है तथा यदि कर्ता स्त्रीलिंग है तो क्रिया का रूप भी स्त्रीलिंग होता है।
(2) आ, ता, आई, आवट, इया, आहट आदि प्रत्यय लगाकर भी स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं; जैसे-
आ- भाषा, कविता, प्रजा, दया, विद्या आदि।
ता- गीता, ममता, लता, संगीता, माता, सुंदरता, मधुरता आदि।
आई- सगाई, मिठाई, धुनाई, पिटाई, धुलाई आदि।
आवट- सजावट, बनावट, लिखावट, थकावट आदि।
इया- कुटिया, बुढ़िया, चिड़िया, बिंदिया, डिबिया आदि।
आहट- चिल्लाहट, घबराहट, चिकनाहट, कड़वाहट आदि।
या- छाया, माया, काया आदि।
आस- खटास, मिठास, प्यास आदि
(3) शरीर के कुछ अंगों के नाम भी स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे-
आँख, नाक, जीभ, पलकें, ठोड़ी आदि।
(4) कुछ आभूषण और परिधान भी स्त्रीलिंग होते है; जैसे-
साड़ी, सलवार, चुन्नी, धोती, टोपी, पैंट, कमीज, पगड़ी, माला, चूड़ी, बिंदी, कंघी, नथ, अँगूठी, हँसुली आदि।
(5) कुछ मसाले आदि भी स्त्रीलिंग के अंतर्गत आते हैं; जैसे-
दालचीनी, लौंग, हल्दी, मिर्च, धनिया, इलायची, अजवायन, सौंफ, चिरौंजी, चीनी, कलौंजी, चाय, कॉफी आदि।
विशेष :
कुछ शब्द ऐसे हैं, जो स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों रूपों में प्रयोग किए जाते है; जैसे-
(1) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, चित्रकार, पत्रकार, प्रबंधक, सभापति, वकील, डॉक्टर, सेक्रेटरी, गवर्नर, लेक्चर, प्रोफेसर आदि।
(2) बर्फ, मेहमान, शिशु, दोस्त, मित्र आदि।
इन शब्दों के लिंग का परिचय योजक-चिह्न, क्रिया अथवा विशेषण से मिलता है।
यहाँ हम देखें, कैसे इस तरह के शब्दों के लिंग को पहचाना जा सकता है :
(i) भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं।
(ii) एम० एफ० हुसैन भारत के प्रसिद्ध चित्रकार हैं।
(iii) मेरी मित्र कॉलेज में लेक्चरर है।
(iv) हिमालय पर जमी बर्फ पिघल रही हैं।
(v) दुख में साथ देने वाला ही सच्चा दोस्त कहलाता है।
(vi) मेरे पिताजी राष्ट्रपति के सेक्रेटरी हैं।
पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताये है-
(अ) जिन संज्ञाओं के अन्त में ‘त्र’ होता है। जैसे- चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, चरित्र, शस्त्र इत्यादि।
(आ) ‘नान्त’ संज्ञाएँ। जैसे- पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण इत्यादि।
अपवाद- ‘पवन’ उभयलिंग है।
(इ) ‘ज’-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- जलज,स्वेदज, पिण्डज, सरोज इत्यादि।
(ई) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में त्व, त्य, व, य होता है। जैसे- सतीत्व, बहूत्व, नृत्य,
कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य इत्यादि।
(उ) जिन शब्दों के अन्त में ‘आर’, ‘आय’, ‘वा’, ‘आस’ हो। जैसे- विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय,
समुदाय, उल्लास, विकास, ह्रास इत्यादि।
अपवाद- सहाय (उभयलिंग), आय (स्त्रीलिंग)।
(ऊ) ‘अ’-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि।
अपवाद- जय (स्त्रीलिंग), विनय (उभयलिंग) आदि।
(ऋ) ‘त’-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- चरित, गणित, फलित, मत, गीत, स्वागत इत्यादि।
(ए) जिनके अन्त में ‘ख’ होता है। जैसे- नख, मुख, सुख, दुःख, लेख, मख, शख इत्यादि।
पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत स्त्रीलिंग शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताये है-
(अ) आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा इत्यादि।
(आ) नाकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्रार्थना, वेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना इत्यादि।
(इ) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु इत्यादि।
अपवाद- मधु, अश्रु, तालु, मेरु, हेतु, सेतु इत्यादि।
(ई) जिनके अन्त में ‘ति’ वा ‘नि’ हो। जैसे- गति, मति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि,
ऋद्धि, सिद्धि (सिध् +ति=सिद्धि) इत्यादि।
(उ) ‘ता’-प्रत्ययान्त भाववाचक संज्ञाएँ। जैसे- न्रमता, लघुता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता इत्यादि।
(ऊ) इकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- निधि, विधि, परिधि, राशि, अग्नि, छवि, केलि, रूचि इत्यादि।
अपवाद- वारि, जलधि, पाणि, गिरि, अद्रि, आदि, बलि इत्यादि।
(ऋ) ‘इमा’- प्रत्ययान्त शब्द। जैसे- महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि।
चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन, मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार, प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ, क्रोध, बोध, मोद, ग्रन्थ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, पश्र, मस्तक, आश्र्चर्य, नृत्य, काष्ट, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन, अंचल, अन्तर्धान, अन्तस्तल, अम्बुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्याण, कवच, कायाकल्प, कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चन्द्र, चन्दन, क्षण, छन्द, अलंकार, सरोवर, परिमाण, परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिशोध, परिशीलन, प्राणदान,
वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट, प्रान्त, नगर, देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दण्ड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ट, विधेयक, विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विऱोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद, शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमन्त्रण, नियंत्रण, आमंत्रण,उद्भव, निबन्ध, नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, उपकरण, आक्रमण, श्रम,बहुमत, निर्माण, सन्देश, ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, लोक, विराम, विक्रम, न्याय, संघ, संकल्प इत्यादि।
दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना, अवस्था, नम्रता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा, ईष्र्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका, घोषणा, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना, संस्था, सहायता,मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, सम्पदा, संविदा, सूचना, सेवा, सेना, विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति,
पूर्ति, विकृति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति, कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति
तद्भव (हिन्दी) शब्दों का लिंग निर्णय
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी के तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने हिन्दी व्याकरण में किया है, वे नियम इस प्रकार है-
(अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- कपड़ा, गत्रा, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा, इत्यादि।
(आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना, आव, पन, वा, पा, होता है। जैसे- आना, गाना, बहाव, चढाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि।
(इ) कृदन्त की आनान्त संज्ञाएँ। जैसे- लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि।
अपवाद- उड़ान, चट्टान इत्यादि।
(अ) ईकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि।
अपवाद- घी, जी मोती, दही इत्यादि।
(आ) ऊनवाचक याकारान्त संज्ञाए। जैसे- गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि।
(इ) तकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि।
अपवाद- भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि।
(ई) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ू इत्यादि।
अपवाद- आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि।
(उ) अनुस्वारान्त संज्ञाएँ। जैसे- सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि।
अपवाद- गेहूँ।
(ऊ) सकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्यास, मिठास, निदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि।
अपवाद- निकास, काँस, रास (नृत्य)।
(ऋ) कृदन्त नकारान्त संज्ञाएँ, जिनका उपान्त्य वर्ण अकारान्त हो अथवा जिनकी धातु नकारान्त हो। जैसे- रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि।
अपवाद- चलन आदि।
(ए) कृदन्त की अकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- लूट, मार,समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकारइत्यादि।
अपवाद- नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि।
(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ट, वट, हट, होता है। जैसे- सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अन्त में ‘ख’ होता है। जैसे- ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि।
अपवाद- पंख, रूख।
कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते है। पं० कामताप्रसाद गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को ‘अव्यापक और अपूर्ण’ कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण है, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते। गुरुजी ने इस सम्बन्ध में जो नियम और उदाहरण दिये है, उनमें भी अपवादों की भरमार है। उन्होंने जो भी नियम दिये है, वे बड़े जटिल और अव्यवहारिक है।
यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है-
(i) शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तक, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाख़ून, नथना, गट्टा इत्यादि।
अपवाद- कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इन्द्रिय, काँख इत्यादि।
(ii) रत्नों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- मोती, माणिक, पत्रा, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि।
अपवाद- मणि, चुत्री, लाड़ली इत्यादि।
(iii) धातुओं के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि।
अपवाद- चाँदी।
(iv) अनाज के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि।
अपवाद- मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि।
(v) पेड़ों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नीबू, अशोक तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि।
अपवाद-लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि।
(vi) द्रव्य पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे- पानी, घी, तेल, अर्क, शर्बत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि।
अपवाद- चाय, स्याही, शराब।
(vii) भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते है। जैसे- देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमण्डल, नभोमण्डल, प्रान्त इत्यादि।
अपवाद- पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि।
(i) नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, व्यास, झेलम इत्यादि।
अपवाद- शोण, सिन्धु, ब्रह्यपुत्र नद है, अतः पुंलिंग है।
(ii) नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भरणी, अश्र्विनी, रोहिणी इत्यादि।
अपवाद- अभिजित, पुष्य आदि।
(iii) बनिये की दुकान की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि।
अपवाद- धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि।
(iv) खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि।
अपवाद- पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि।
हिन्दी के कृदन्त और तद्धित-प्रत्ययों में स्त्रीलिंग-पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार है-
स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अ, अन्त,आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि। हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- लूट, चमक, देन, भिड़न्त, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती, करनी, भरनी।
द्रष्टव्य- इन स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते है और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते है। जैसे- ‘सीवन’ (‘न’-प्रत्ययान्त) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शोष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग है।
पुंलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे है, वे पुंलिंग होते है। जैसे- पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया।
द्रष्टव्य- (i) क और न कृदन्त-प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं। (ii)’सार’ उर्दू का कृदन्त- प्रत्यय है, जो हिन्दी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय- आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि। हिन्दी तद्धित-प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित-प्रत्यय- आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वन्त, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सों, हर, हरा, हा, हारा, इत्यादि। हिन्दी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है वे शब्द पुंलिंग होते है। जैसे- धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खण्डहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा।
द्रष्टव्य- (i) इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे-
(ii) विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे- ‘ल’ तद्धित-प्रत्यय संज्ञा-शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में- ‘घाव+ल=घायल’- अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो ‘घायल’ स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग।
(iii) ‘क’ तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किन्तु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है। जैसे- चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठण्डक, धमक (स्त्रीलिंग)। ‘आन’ प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किन्तु विशेषण में विशेष्य के अनुसार। जैसे- लम्बा+आन=लम्बान (स्त्रीलिंग)।
(iv) अधिकतर भाववाचक और उनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते है।
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी के तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने हिन्दी व्याकरण में किया है, वे नियम इस प्रकार है-
(अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- कपड़ा, गत्रा, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा, इत्यादि।
(आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना, आव, पन, वा, पा, होता है। जैसे- आना, गाना, बहाव, चढाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि।
(इ) कृदन्त की आनान्त संज्ञाएँ। जैसे- लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि।
अपवाद- उड़ान, चट्टान इत्यादि।
(अ) ईकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि।
अपवाद- घी, जी मोती, दही इत्यादि।
(आ) ऊनवाचक याकारान्त संज्ञाए। जैसे- गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि।
(इ) तकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि।
अपवाद- भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि।
(ई) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ू इत्यादि।
अपवाद- आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि।
(उ) अनुस्वारान्त संज्ञाएँ। जैसे- सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि।
अपवाद- गेहूँ।
(ऊ) सकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्यास, मिठास, निदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि।
अपवाद- निकास, काँस, रास (नृत्य)।
(ऋ) कृदन्त नकारान्त संज्ञाएँ, जिनका उपान्त्य वर्ण अकारान्त हो अथवा जिनकी धातु नकारान्त हो। जैसे- रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि।
अपवाद- चलन आदि।
(ए) कृदन्त की अकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- लूट, मार,समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकारइत्यादि।
अपवाद- नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि।
(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ट, वट, हट, होता है। जैसे- सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अन्त में ‘ख’ होता है। जैसे- ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि।
अपवाद- पंख, रूख।
कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते है। पं० कामताप्रसाद गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को ‘अव्यापक और अपूर्ण’ कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण है, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते। गुरुजी ने इस सम्बन्ध में जो नियम और उदाहरण दिये है, उनमें भी अपवादों की भरमार है। उन्होंने जो भी नियम दिये है, वे बड़े जटिल और अव्यवहारिक है।
यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है-
(i) शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तक, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाख़ून, नथना, गट्टा इत्यादि।
अपवाद- कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इन्द्रिय, काँख इत्यादि।
(ii) रत्नों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- मोती, माणिक, पत्रा, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि।
अपवाद- मणि, चुत्री, लाड़ली इत्यादि।
(iii) धातुओं के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि।
अपवाद- चाँदी।
(iv) अनाज के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि।
अपवाद- मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि।
(v) पेड़ों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नीबू, अशोक तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि।
अपवाद-लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि।
(vi) द्रव्य पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे- पानी, घी, तेल, अर्क, शर्बत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि।
अपवाद- चाय, स्याही, शराब।
(vii) भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते है। जैसे- देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमण्डल, नभोमण्डल, प्रान्त इत्यादि।
अपवाद- पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि।
(i) नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, व्यास, झेलम इत्यादि।
अपवाद- शोण, सिन्धु, ब्रह्यपुत्र नद है, अतः पुंलिंग है।
(ii) नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भरणी, अश्र्विनी, रोहिणी इत्यादि।
अपवाद- अभिजित, पुष्य आदि।
(iii) बनिये की दुकान की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि।
अपवाद- धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि।
(iv) खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि।
अपवाद- पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि।
हिन्दी के कृदन्त और तद्धित-प्रत्ययों में स्त्रीलिंग-पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार है-
स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अ, अन्त,आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि। हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- लूट, चमक, देन, भिड़न्त, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती, करनी, भरनी।
द्रष्टव्य- इन स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते है और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते है। जैसे- ‘सीवन’ (‘न’-प्रत्ययान्त) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शोष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग है।
पुंलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे है, वे पुंलिंग होते है। जैसे- पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया।
द्रष्टव्य- (i) क और न कृदन्त-प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं। (ii)’सार’ उर्दू का कृदन्त- प्रत्यय है, जो हिन्दी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय- आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि। हिन्दी तद्धित-प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित-प्रत्यय- आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वन्त, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सों, हर, हरा, हा, हारा, इत्यादि। हिन्दी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है वे शब्द पुंलिंग होते है। जैसे- धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खण्डहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा।
द्रष्टव्य- (i) इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे-
(ii) विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे- ‘ल’ तद्धित-प्रत्यय संज्ञा-शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में- ‘घाव+ल=घायल’- अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो ‘घायल’ स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग।
(iii) ‘क’ तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किन्तु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है। जैसे- चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठण्डक, धमक (स्त्रीलिंग)। ‘आन’ प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किन्तु विशेषण में विशेष्य के अनुसार। जैसे- लम्बा+आन=लम्बान (स्त्रीलिंग)।
(iv) अधिकतर भाववाचक और उनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते है।
परिस्थिति, विमति, वृत्ति, आवृत्ति, शान्ति, सन्धि, समिति, सम्पत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी, मण्डली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुण्डली, कुण्डलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि।
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी के तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने हिन्दी व्याकरण में किया है, वे नियम इस प्रकार है-
(अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- कपड़ा, गत्रा, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा, इत्यादि।
(आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना, आव, पन, वा, पा, होता है। जैसे- आना, गाना, बहाव, चढाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि।
(इ) कृदन्त की आनान्त संज्ञाएँ। जैसे- लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि।
अपवाद- उड़ान, चट्टान इत्यादि।
(अ) ईकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि।
अपवाद- घी, जी मोती, दही इत्यादि।
(आ) ऊनवाचक याकारान्त संज्ञाए। जैसे- गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि।
(इ) तकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि।
अपवाद- भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि।
(ई) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ू इत्यादि।
अपवाद- आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि।
(उ) अनुस्वारान्त संज्ञाएँ। जैसे- सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि।
अपवाद- गेहूँ।
(ऊ) सकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्यास, मिठास, निदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि।
अपवाद- निकास, काँस, रास (नृत्य)।
(ऋ) कृदन्त नकारान्त संज्ञाएँ, जिनका उपान्त्य वर्ण अकारान्त हो अथवा जिनकी धातु नकारान्त हो। जैसे- रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि।
अपवाद- चलन आदि।
(ए) कृदन्त की अकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- लूट, मार,समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकारइत्यादि।
अपवाद- नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि।
(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ट, वट, हट, होता है। जैसे- सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अन्त में ‘ख’ होता है। जैसे- ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि।
अपवाद- पंख, रूख।
कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते है। पं० कामताप्रसाद गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को ‘अव्यापक और अपूर्ण’ कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण है, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते। गुरुजी ने इस सम्बन्ध में जो नियम और उदाहरण दिये है, उनमें भी अपवादों की भरमार है। उन्होंने जो भी नियम दिये है, वे बड़े जटिल और अव्यवहारिक है।
यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है-
(i) शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तक, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाख़ून, नथना, गट्टा इत्यादि।
अपवाद- कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इन्द्रिय, काँख इत्यादि।
(ii) रत्नों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- मोती, माणिक, पत्रा, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि।
अपवाद- मणि, चुत्री, लाड़ली इत्यादि।
(iii) धातुओं के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि।
अपवाद- चाँदी।
(iv) अनाज के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि।
अपवाद- मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि।
(v) पेड़ों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नीबू, अशोक तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि।
अपवाद-लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि।
(vi) द्रव्य पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे- पानी, घी, तेल, अर्क, शर्बत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि।
अपवाद- चाय, स्याही, शराब।
(vii) भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते है। जैसे- देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमण्डल, नभोमण्डल, प्रान्त इत्यादि।
अपवाद- पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि।
(i) नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, व्यास, झेलम इत्यादि।
अपवाद- शोण, सिन्धु, ब्रह्यपुत्र नद है, अतः पुंलिंग है।
(ii) नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भरणी, अश्र्विनी, रोहिणी इत्यादि।
अपवाद- अभिजित, पुष्य आदि।
(iii) बनिये की दुकान की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि।
अपवाद- धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि।
(iv) खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि।
अपवाद- पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि।
हिन्दी के कृदन्त और तद्धित-प्रत्ययों में स्त्रीलिंग-पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार है-
स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अ, अन्त,आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि। हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- लूट, चमक, देन, भिड़न्त, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती, करनी, भरनी।
द्रष्टव्य- इन स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते है और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते है। जैसे- ‘सीवन’ (‘न’-प्रत्ययान्त) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शोष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग है।
पुंलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे है, वे पुंलिंग होते है। जैसे- पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया।
द्रष्टव्य- (i) क और न कृदन्त-प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं। (ii)’सार’ उर्दू का कृदन्त- प्रत्यय है, जो हिन्दी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय- आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि। हिन्दी तद्धित-प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित-प्रत्यय- आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वन्त, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सों, हर, हरा, हा, हारा, इत्यादि। हिन्दी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है वे शब्द पुंलिंग होते है। जैसे- धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खण्डहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा।
द्रष्टव्य- (i) इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे-
प्रत्यय | पद | तद्धित पद | |
---|---|---|---|
इया | मुख | मुखिया | (पुंलिंग) |
खाट | खटिया (ऊनवाचक) | (स्त्रीलिंग) | |
ई | डोर | डोरी | (स्त्रीलिंग) |
एर | मूँड़ | मुँड़ेर | (स्त्रीलिंग) |
अंध | अँधेर | (पुंलिंग) | |
एल | फूल | फुलेल | (पुंलिंग) |
नाक | नकेल | (स्त्रीलिंग) | |
क | पंच | पंचक | (पुंलिंग) |
ठण्ड | ठण्डक | (स्त्रीलिंग) |
(ii) विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे- ‘ल’ तद्धित-प्रत्यय संज्ञा-शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में- ‘घाव+ल=घायल’- अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो ‘घायल’ स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग।
(iii) ‘क’ तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किन्तु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है। जैसे- चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठण्डक, धमक (स्त्रीलिंग)। ‘आन’ प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किन्तु विशेषण में विशेष्य के अनुसार। जैसे- लम्बा+आन=लम्बान (स्त्रीलिंग)।
(iv) अधिकतर भाववाचक और उनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते है।
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी के तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने हिन्दी व्याकरण में किया है, वे नियम इस प्रकार है-
(अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- कपड़ा, गत्रा, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा, इत्यादि।
(आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना, आव, पन, वा, पा, होता है। जैसे- आना, गाना, बहाव, चढाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि।
(इ) कृदन्त की आनान्त संज्ञाएँ। जैसे- लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि।
अपवाद- उड़ान, चट्टान इत्यादि।
(अ) ईकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि।
अपवाद- घी, जी मोती, दही इत्यादि।
(आ) ऊनवाचक याकारान्त संज्ञाए। जैसे- गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि।
(इ) तकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि।
अपवाद- भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि।
(ई) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ू इत्यादि।
अपवाद- आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि।
(उ) अनुस्वारान्त संज्ञाएँ। जैसे- सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि।
अपवाद- गेहूँ।
(ऊ) सकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्यास, मिठास, निदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि।
अपवाद- निकास, काँस, रास (नृत्य)।
(ऋ) कृदन्त नकारान्त संज्ञाएँ, जिनका उपान्त्य वर्ण अकारान्त हो अथवा जिनकी धातु नकारान्त हो। जैसे- रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि।
अपवाद- चलन आदि।
(ए) कृदन्त की अकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- लूट, मार,समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकारइत्यादि।
अपवाद- नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि।
(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ट, वट, हट, होता है। जैसे- सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अन्त में ‘ख’ होता है। जैसे- ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि।
अपवाद- पंख, रूख।
कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते है। पं० कामताप्रसाद गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को ‘अव्यापक और अपूर्ण’ कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण है, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते। गुरुजी ने इस सम्बन्ध में जो नियम और उदाहरण दिये है, उनमें भी अपवादों की भरमार है। उन्होंने जो भी नियम दिये है, वे बड़े जटिल और अव्यवहारिक है।
यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है-
(i) शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तक, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाख़ून, नथना, गट्टा इत्यादि।
अपवाद- कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इन्द्रिय, काँख इत्यादि।
(ii) रत्नों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- मोती, माणिक, पत्रा, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि।
अपवाद- मणि, चुत्री, लाड़ली इत्यादि।
(iii) धातुओं के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि।
अपवाद- चाँदी।
(iv) अनाज के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि।
अपवाद- मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि।
(v) पेड़ों के नाम पुंलिंग होते है। जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नीबू, अशोक तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि।
अपवाद-लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि।
(vi) द्रव्य पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे- पानी, घी, तेल, अर्क, शर्बत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि।
अपवाद- चाय, स्याही, शराब।
(vii) भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते है। जैसे- देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमण्डल, नभोमण्डल, प्रान्त इत्यादि।
अपवाद- पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि।
(i) नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, व्यास, झेलम इत्यादि।
अपवाद- शोण, सिन्धु, ब्रह्यपुत्र नद है, अतः पुंलिंग है।
(ii) नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भरणी, अश्र्विनी, रोहिणी इत्यादि।
अपवाद- अभिजित, पुष्य आदि।
(iii) बनिये की दुकान की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि।
अपवाद- धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि।
(iv) खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे- कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि।
अपवाद- पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि।
हिन्दी के कृदन्त और तद्धित-प्रत्ययों में स्त्रीलिंग-पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार है-
स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अ, अन्त,आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि। हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- लूट, चमक, देन, भिड़न्त, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती, करनी, भरनी।
द्रष्टव्य- इन स्त्रीलिंग कृदन्त-प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते है और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते है। जैसे- ‘सीवन’ (‘न’-प्रत्ययान्त) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शोष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग है।
पुंलिंग कृदन्त-प्रत्यय- अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिन्दी कृदन्त-प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे है, वे पुंलिंग होते है। जैसे- पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया।
द्रष्टव्य- (i) क और न कृदन्त-प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं। (ii)’सार’ उर्दू का कृदन्त- प्रत्यय है, जो हिन्दी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय- आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि। हिन्दी तद्धित-प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है, वे स्त्रीलिंग होते है। जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित-प्रत्यय- आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वन्त, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सों, हर, हरा, हा, हारा, इत्यादि। हिन्दी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते है वे शब्द पुंलिंग होते है। जैसे- धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खण्डहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा।
द्रष्टव्य- (i) इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे-
प्रत्यय | पद | तद्धित पद | |
---|---|---|---|
इया | मुख | मुखिया | (पुंलिंग) |
खाट | खटिया (ऊनवाचक) | (स्त्रीलिंग) | |
ई | डोर | डोरी | (स्त्रीलिंग) |
एर | मूँड़ | मुँड़ेर | (स्त्रीलिंग) |
अंध | अँधेर | (पुंलिंग) | |
एल | फूल | फुलेल | (पुंलिंग) |
नाक | नकेल | (स्त्रीलिंग) | |
क | पंच | पंचक | (पुंलिंग) |
ठण्ड | ठण्डक | (स्त्रीलिंग) |
(ii) विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे- ‘ल’ तद्धित-प्रत्यय संज्ञा-शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में- ‘घाव+ल=घायल’- अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो ‘घायल’ स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग।
(iii) ‘क’ तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किन्तु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है। जैसे- चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठण्डक, धमक (स्त्रीलिंग)। ‘आन’ प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किन्तु विशेषण में विशेष्य के अनुसार। जैसे- लम्बा+आन=लम्बान (स्त्रीलिंग)।
(iv) अधिकतर भाववाचक और उनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते है।
(Tatsam Shabd) :
तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों | जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन के ले लिया जाता है उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं | इनमें ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है |
जैसे :- हिंदी , बांग्ला , मराठी , गुजराती , पंजाबी , तेलगु , कन्नड़ , मलयालम आदि |
समय और परिस्थिति की वजह से तत्सम शब्दों में जो परिवर्तन हुए हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं |
(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है |
(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है |
(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है |
(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है |
(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है |
(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है |
(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है |
1. आम्र = आम
2. आश्चर्य = अचरज
3. अक्षि = आँख
4. अमूल्य = अमोल
5. अग्नि = आग
6. अँधेरा = अंधकार
7. अगम = अगम्य
8. आधा = अर्ध
9. अकस्मात = अचानक
10. आलस्य = आलस
11. अज्ञानी = अज्ञानी
12. अश्रु = आँसू
13. अक्षर = अच्छर
14. अंगरक्षक = अंगरखा
15. आश्रय = आसरा
16. आशीष = असीस
17. अशीति = अस्सी
18. ओष्ठ = ओंठ
19. आरात्रिका = आरती
20. अमृत = अमिय
21. अंध = अँधा
22. अर्द्ध = आधा
23. अन्न = अनाज
24. अनर्थ = अनाड़ी
25. अग्रणी = अगुवा
26. अक्षवाट = अखाडा
27. अंगुष्ठ = अंगूठा
28. अक्षोट = अखरोट
29. अट्टालिका = अटारी
30. अष्टादश = अठारह
31. अंक = आँक
32. अंगुली = ऊँगली
33. अंचल = आंचल
34. अंजलि = अँजुरी
35. अखिल = आखा
36. अगणित = अनगिनत
37. अद्य = आज
38. अम्लिका = इमली
39. अमावस्या = अमावस
40. अर्पण = अरपन
41. अन्यत्र = अनत
42. अनार्य = अनाड़ी
43. अज्ञान = अजान
44. आदित्यवार = इतवार
45. आभीर = अहेर
46. आम्रचूर्ण = अमचूर
47. आमलक = आँवला
48. आर्य = आरज
49. आश्रय = आसरा
50. आश्विन = आसोज
51. आभीर = अहेर
52. इक्षु = ईंख
53. ईर्ष्या = इरषा
54. इष्टिका = ईंट
55. उलूक = उल्लू
56. ऊँचा = उच्च
57. उज्ज्वल = उजला
58. उष्ट्र = ऊँट
59. उत्साह = उछाह
60. ऊपालम्भ = उलाहना
61. उदघाटन = उघाड़ना
62. उपवास = उपास
63. उच्छवास = उसास
64. उद्वर्तन = उबटन
65. उलूखल = ओखली
66. ऊषर = ऊँट
67. एकादश = ग्यारह
68. एला = इलायची
69. ऋक्ष = रीछ
क ,ख से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
70. किरण = किरन
71. कुपुत्र = कपूत
72. कर्म = काम
73. काक = कौआ
74. कपोत = कबूतर
75. कदली = केला
76. कपाट = किवाड़
77. कीट = कीड़ा
78. कूप = कुआँ
79. कोकिल = कोयल
80. कर्ण = कान
81. कृषक = किसान
82. कुम्भकर = कुम्हार
83. कटु = कडवा
84. कुक्षी = कोख
85. क्लेश = कलेश
86. काष्ठ = काठ
87. कृष्ण = किसन
88. कुष्ठ = कोढ़
89. कृतगृह = कचहरी
90. कर्पूर = कपूर
91. कार्य = काज
92. कार्तिक = कातिक
93. कुक्कुर = कुत्ता
94. कन्दुक = गेंद
95. कच्छप = कछुआ
96. कंटक = काँटा
97. कुमारी = कुँवारी
98. कृपा = किरपा
99. कपर्दिका = कौड़ी
100. कुब्ज = कुबड़ा
101. कोटि = करोड़
102. कर्तव्य = करतब
103. कंकण = कंगन
104. किंचित = कुछ
105. केवर्त = केवट
106. खटवा = खाट
107. घोटक = घोडा
108. गृह = घर
109. घृत = घी
110. ग्राम = गाँव
111. गर्दभ = गधा
112. घट = घडा
113. ग्रीष्म = गर्मी
114. ग्राहक = गाहक
115. गौ = गाय
116. घृणा = घिन
117. गर्जर = गाजर
118. ग्रन्थि = गाँठ
119. घटिका = घड़ी
120. गोधूम = गेंहूँ
121. ग्राहक = गाहक
122. गौरा = गोरा
123. गृध = गीध
124. गायक = गवैया
125. ग्रामीण = गँवार
126. गोमय = गोबर
127. गृहिणी = घरनी
128. गोस्वामी = गुसाई
129. गोपालक = ग्वाला
130. गर्मी = घाम
131. चन्द्र = चाँद
132. छिद्र = छेद
133. चर्म = चमडा
134. चूर्ण = चूरन
135. छत्र = छाता
136. चतुर्विंश = चौबीस
137. चतुष्कोण = चौकोर
138. चतुष्पद = चौपाया
139. चक्रवाक = चकवा
140. चर्म = चाम
141. चर्मकार = चमार
142. चंचु = चोंच
143. चतुर्थ = चौथा
144. चैत्र = चैत
145. चंडिका = चाँदनी
146. चित्रकार = चितेरा
147. चिक्कण = चिकना
148. चवर्ण = चबाना
149. चक = चाक
150. छाया = छाँह
151. जिह्वा = जीभ
152. ज्येष्ठ = जेठ
153. जमाता = जवाई
154. ज्योति = जोत
155. जन्म = जनम
156. जंधा = जाँध
157. झरन = झरना
158. जीर्ण = झीना
159. तैल = तेल
160. तृण = तिनका
161. ताम्र = ताँबा
162. तिथिवार = त्यौहार
163. ताम्बूलिक = तमोली
164. तड़ाग = तालाब
165. त्वरित = तुरंत
166. तपस्वी = तपसी
167. तुंद = तोंद
168. तीर्थ = तीरथ
169. दूर्वा = दूब
170. दधि = दही
171. दुग्ध = दूध
172. दीपावली = दीवाली
173. धर्म = धरम
174. दंत = दांत
175. दीप = दीया
176. धूम्र = धुआँ
177. धैर्य = धीरज
178. दिशांतर = दिशावर
179. धृष्ठ = ढीठ
180. दंतधावन = दतून
181. दंड = डंडा
182. द्वादश = बारह
183. द्विगुणा = दुगुना
184. दंष्ट्रा = दाढ
185. दिपशलाका = दिया सलाई
186. द्विप्रहरी = दुपहरी
187. धरित्री = धरती
188. दंष = डंका
189. द्विपट = दुपट्टा
190. दुर्बल = दुर्बला
191. दुःख = दुख
192. द्वितीय = इजा
193. दक्षिण = दाहिना
194. धूलि = धुरि
195. धन्नश्रेष्ठी = धन्नासेठी
196. दौहित्र = दोहिता
197. देव = दई
198. पक्षी = पंछी
199. नयन = नैन
200. पत्र = पत्ता
201. नृत्य = नाच
202. निंद्रा = नींद
203. पद = पैर
204. नव्य = नया
205. प्रस्तर = पत्थर
206. नासिका = नाक
207. पिपासा = प्यास
208. पक्ष = पंख
209. नवीन = नया
210. नग्न = नंगा
211. पुत्र = पूत
212. प्रहर = पहर
213. पितृश्वसा = बुआ
214. प्रतिवेश्मिक = पड़ोसी
215. प्रत्यभिज्ञान = पहचान
216. प्रहेलिका = पहेली
217. पुष्प = फूल
218. पृष्ठ = पीठ
219. पौष = पूस
220. पुत्रवधू = पतोहू
221. पंच = पाँच
222. नारिकेल = नारियल
223. निष्ठुर = निठुर
224. पश्चाताप = पछतावा
225. प्रकट = प्रगट
226. प्रतिवासी = पड़ोसी
227. पितृ = पिता
228. पीत = पीला
229. नापित = नाई
230. पर्यंक = पलंग
231. पक्वान्न = पकवान
232. पाषाण =पाहन
233. प्रतिच्छाया = परछाई
234. निर्वाह = निवाह
235. निम्ब = नीम
236. नकुल = नेवला
237. नव = नौ
238. परीक्षा = परख
239. पुष्कर = पोखर
240. पर्ण = परा
241. पूर्व = पूरब
242. पंचदष = पन्द्रह
243. पक्क = पका
244. पट्टिका = पाटी
245. पवन = पौन
246. प्रिय = पिय
247. पुच्छ = पूंछ
248. पर्पट = पापड़
249. फणी = फण
250. पद्म = पदम
251. परख: = परसों
252. पाष = फंदा
253. प्रस्वेदा = पसीना
254. बालुका = बालू
255. बिंदु = बूंद
256. फाल्गुन = फागुन
257. बधिर = बहरा
258. बलिवर्द = बैल
259. बली वर्द = बींट
260. मयूर = मोर
261. मुख = मुँह
262. मक्षिका = मक्खी
263. मस्तक = माथा
264. भिक्षुक = भिखारी
265. मृत्यु = मोत
266. भिक्षा = भीख
267. मातुल = मामा
268. भ्राता = भाई
269. मिष्ट = मीठा
270. मृत्तिका = मिट्टी
271. भुजा = बाँह
272. भगिनी = बहिन
273. मृग = मिरग
274. मनुष्य = मानुष
275. भक्त = भगत
276. भल्लुक = भालू
277. मार्ग = मग
278. मित्र = मीत
279. मुष्टि = मुट्ठी
280. मूल्य = मोल
281. मूषक = मूस
282. मेघ = मेह
283. भाद्रपद = भादौं
284. मौक्तिक = मोती
285. मर्कटी = मकड़ी
286. मश्रु = मूंछ
287. भद्र = भला
288. भ्रत्जा = भतीजा
289. भ्रमर = भौरां
290. भ्रू = भौं
291. मुषल = मूसल
292. महिषी = भैंस
293. मरीच = मिर्च
294. रात्रि = रात
295. युवा = जवान
296. यश = जस
297. राशि = रास
298. रोदन = रोना
299. योगी = जोगी
300. राजा = राय
301. यमुना = जमुना
302. यज्ञोपवीत = जनेऊ
303. यव = जौ
304. राजपुत्र = राजपूत
305. यति = जति
306. यूथ = जत्था
307. युक्ति = जुगति
308. रक्षा = राखी
309. रज्जु = रस्सी
310. रिक्त = रीता
311. यषोदा = जसोदा
312. वानर = बन्दर
313. लौह = लोहा
314. वत्स = बच्चा
315. विवाह = ब्याह
316. वधू = बहू
317. वाष्प = भाप
318. विद्युत् = बिजली
319. वार्ता = बात
320. लक्ष = लाख
321. लक्ष्मण = लखन
322. व्याघ्र = बाघ
323. वणिक = बनिया
324. वाणी = बैन
325. वरयात्रा = बारात
326. वर्ष = बरस
327. वैर = बैर
328. लज्जा = लाज
329. लवंग = लौंग
330. लोक = लोग
331. वट = बड
332. वज्रांग = बजरंग
333. वल्स = बछड़ा
334. लोमशा = लोमड़ी
335. वक = बगुला
336. वंष = बांस
337. वृश्चिका = बिच्छु
338. लवणता = लुनाई
339. लेपन = लीपना
340. विकार = विगाड
341. व्यथा = विथा
342. वर्षा = बरसात
343. सूर्य = सूरज
344. स्वर्ण = सोना
345. स्तन = थन
346. सूची = सुई
347. सुभाग = सुहाग
348. शिक्षा = सीख
349. शुष्क = सूखा
350. सत्य = सच
351. सर्प = साँप
352. श्रंगार = सिंगर
353. शत = सौ
354. सप्त = सात
355. शर्कर = शक्कर
356. शिर = सिर
357. श्रृंग = सींग
358. श्रेष्ठी = सेठ
359. श्रावण = सावन
360. शाक = साग
361. शलाका = सलाई
362. श्यामल = साँवला
363. शून्य = सूना
364. शप्तशती = सतसई
365. स्फोटक = फोड़ा
366. स्कन्ध = कंधा
367. स्नेह = नेह
368. श्यालस = साला
369. शय्या = सेज
370. स्वसुर = ससुर
371. श्रंखला = साँकल
372. श्रृंगाल = सियार
373. शिला = सिल
374. सूत्र = सूत
375. शीर्ष = सीस
376. स्थल = थल
377. स्थिर = थिर
378. ससर्प = सरसों
379. सपत्नी = सौत
380. स्वर्णकार = सुनार
381. शूकर = सूअर
382. शाप = श्राप
383. श्याली = साली
384. श्मषान = समसान
385. शुक = सुआ
386. हास्य = हँसी
387. क्षीर = खीर
388. क्षेत्र = खेत
389. हिरन = हरिण
390. हस्त = हाथ
391. हस्ती = हाथी
392. क्षत्रिय = खत्री
393. क्षार = खार
394. क्षत = छत
395. हरिद्रा = हल्दी
396. क्षति = छति
397. क्षीण = छीन
398. क्षत्रिय = खत्री
399. हट्ट = हाट
400. होलिका = होली
401. ह्रदय = हिय
402. हंडी = हांड़ी
403. त्रिणी = तीन
404. त्रयोदष = तेरह